राजनीति का कड़वा सत्य वोटर फिर भी पस्त

गांधी नगर :-अनुमान अनुसार गुजरात के चुनाव की तारीख जाहिर हो गई । गुजरात का चुनाव हिमाचल के साथ जाहिर होता तो अच्छा रहता, मगर इसी का नाम राजनीति है फिर चाहे भाजप, कांग्रेस या अन्य कोई पक्ष हो । 

तारीख तय होते ही आचार संहिता लागु हो गई, मगर राजनीतिक पक्ष संहिता का ही आचार बना देंगे । 

गुजरात की तासीर है की वहाँ दो पक्ष शासक और विपक्ष का चलन ही रहा है जो भाजप और कांग्रेस है । तीसरा या प्रादेशिक पक्ष पनपा ही नहीं है और हमेशा वोट कटवा ही रहा है । एनसीपी, आप, बसपा, सपा या शंकर सिंह अपने उम्मीदवार उतारेंगे मगर ज्यादातर  एक दो ही जीतेगें बाकी के कांग्रेस या भाजप के वोट ही काटेंगे । 

अब उम्मीदवार तय होंगे । गलती या जोड़तोड़ यहीं से शुरु होती है । टिकट पाने के लिए महा संग्राम होगा । हजारो कार्यकर्ता को विधायक बनना है और बैठक है 182 । टिकट नहीं मिलने पर विद्रोह करेंगे अन्य पक्ष से या अपक्ष खडे रहेंगे और पक्ष से कहीं सालो के जुडाव और समर्पण को भूल कर दुश्मन बन॔गे  । 

आजकल उम्मीदवार तय करते समय उसके गुण देखना बंद हो गया है । अब तो जीतने अधिक अवगुण उतना अधिक उम्मीदवार  बेहतर । ‘ प्रभू जी  मोरे अवगुण चीत ना धरो । ‘

देश का यह बड़ा दुर्भाग्य है की नौकरी के लिए लालायित युवान कितना भी पढा लिखा… काबिल  हो एक मात्र पुलिस फरियाद ही उसे नौकरी के लिए अयोग्य बना देती है । 

जब की कितना भी निक्कमा खून, बलात्कार या जघन्य अपराध के आरोपित उम्मीदवार चुनाव लड कर विधायक या सांसद बनकर राज्य या देश का प्रतिनिधित्व करते हैं । वैसे ही अवांछित जब तक चुनाव लड़ते और जीतते रहेंगे देश का भविष्य अंधकारमय ही होना है । ‘ बोये पैड बबुल के तो आम कहां से होय ?

सभी पक्ष की जिम्मेवारी है… फर्ज है की वोह गुनाहगार को टिकट न दे ।’ अभी तो न्यायालय मे मुकदमा चल रहा है… दोषी साबित होने से पहले उम्मीदवार चुनाव लड सकता है ।’ ऐसे बहाने बना के सभी राजनीतिक पक्ष उम्मीदवार का बचाव करते है मगर सच मे तो सभी पक्ष को हर हाल मे चुनाव जीतना है । अरे अरबो की जनसंख्या के देश मे राजनीतिक पक्ष को 182 स्वच्छ प्रतिभावान उम्मीदवार न मिले यह देश का और गरीब जनता का दुर्भाग्य है । जरा पक्ष के मुखियाओ से पूछे ‘ क्या आप अपनी बेटी बेटे का रिश्ता ऐसे लोगो से करेंगे ?’ जवाब ना मे होंगा ।

एक पढने और मनन कर ने लायक किस्से से अपनी बात को विराम देता हुं ।

अपने देश के कीसी प्रदेश की  बात है एक अपराधी किस्म का कांस्टेबल पुलिस महकमे में दादागिरी करे । वहां के डीएसपी न्यायप्रिय और गलत को नहीं सहनेवाले । कांस्टेबल को एक मुकदमे मे सजा हुई । सजा जाहिर होते ही डीएसपी ने उसे  नौकरी से निकाल दिया । 

 तकदीर ने करवट बदली, उपरी अदालत से सबूत के अभाव मे कांस्टेबल निर्दोष जाहिर हुआ ।  बाद मे वो चुनाव लडा, जीता और प्रधान बना । 

अब बारी कांस्टेबल प्रधान  की थी । वह उसी जिल्ला कचहरी की मुलाकात पर गया जहाँ के  डीएसपीने उसे नौकरी से निकाला था । कर्तव्यनिष्ठ डीएसपी को  प्रधान बने पदच्युत कांस्टेबल का आवभगत करना था, सलाम भरनी थी । स्वमानि डीएसपी छुट्टी पे उतर गये और बाद मे सेवानिवृत्ति ले ली ।

इस चुनाव मे यही होनेवाला है और जीस पक्ष मे जीतने ज्यादा गुनाहगार उतनी ज्यादा जीत और  बैठक पक्की । यही अपराधी चुनाव जीतकर सामान्य इन्सान को लूटेंगे, हत्या करेंगे और इज्जत से खेलेंगे । जनता लाचार है और शायद यही अति कडवी … जहरीली सच्चाई है ।

…वरिष्ठ समाज चिंतक श्री जोशी जी की कलम से

    Related posts

    Leave a Comment