रानी पद्मावती लगभग 700 वर्ष पश्चात*

हमारे जीवन मे चलचित्र का प्रभाव अधिक है ।
जोशी जी की कलम से :- पहले अपनी बात को समझाने हेतु संस्कृत के श्लोक या शुभाषित का प्रयोग किया जाता था । आजकल चलचित्र के संवाद या गीत का प्रयोग प्रचलित है । जैसे की माँ का निरूपण करने माता को संबोधित गीत गा कर भाव दर्शाने मे सरलता रहती है ।
आजकल चलचित्र का प्रभाव इतना बढ गया है की उस के न होते जीवन मे शून्यता लगती है । शायद इसी लिए हम अभिनेता और अभिनेत्री को सितारे कहते है जो हमारे मनोआकाश मे टिमटिमाते रहते है । दक्षिण भारत मे सितारे राज्य के मुख्य प्रधान और केंद्र मे प्रधान बने है ।
आजकल रानी पद्मावती पर बनी फिल्म ने अखबारो मे और मिडिया मे बडी जगह पा ली है । गुजरात मे आनेवाले चुनाव की वजह से विवाद  बढता जा रहा है ।
भारतीय प्रजा शांतिप्रिय रही और राजा हमेशा एक दूजे से लडते रहे । नतीजा यही की विदेशी आक्रांताओ ने जी भर के लूटा… भारतवर्ष को हजारो साल गुलामी की जंजीरो मे जकड़ के रखा ।
आज भी हमे देशहित की सोच वाला शासक पसंद नहीं । हमे गुलामी की इतनी आदत पड गई है की जंजीर बीना हम रह नहीं सकते ।
राणी पद्मावती भारतीय इतिहास की वो नायिका है जिस के पात्र को आज की ऐशो ऐयाशी मे पडी नायिका निभा ही नहीं सकती ।’ बांज क्या जाने प्रसूति की पीड़ा ।’
रानी पद्मावती के इतिहास की जन जन को जानकारी है । मलेच्छ खिलजी के युद्ध जीतने के बाद रानी के सामने  आत्मसम्मान से जीवन त्याग करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं था । रानी और हज़ारो राजपूत नारी जौहर कर के     सर्वोच्च बलिदान दे के इतिहास  मे अमर हो गई ।
आज इस इतिहास पर फिल्म बनानी चाहिए मगर फिल्मकार को रानी के बलिदान की जगह सनसनी..  प्रचार.. चाहिए । इस लिए खिलजी ख्वाब मे रानी मिलता है ऐसी मनगढ़ंत कहानी बनाई जाने की बाते सामने आती है । निर्माता संजय भंसाली को अपनी माँ अधिक प्यारी है इसलिए अपने नाम मे माँ लीला का नाम जोड़ कर अपना नाम संजय लीला भंसाली रखा है । क्या रानी पद्मावती राजपूतो… हिंदुओ की माता नहीं है ? क्या समाज जीसे सेकडो सदीओ से माता मानकर पूजता है ऐसी परम पवित्र चरित्र को सस्ती प्रसिद्धि पाने के लिए नीचा देखना कौन  पसंद करेगा ?
अधिकतर फिल्मकार को हिंदु धर्म और हिंदु संस्कृति प्रति दुर्भावना क्युं है ? जवाब सीधा सा मगर दिल दुखाने वाला है की हमे ही अपने धर्म पर लगाव नहीं अन्यथा ‘ पी के ‘ और ‘ ओ माय गोड ‘ जैसी फिल्मे महा सफल क्यों हो ? इस्लाम और ईसाई धर्म मे भी बहोत खामियां है मगर है किसी मे मजाल की उन्हे नीचा दिखाती फिल्म बनाए ? हिंदु धर्म तो जैसे ‘ गरीब की जोरु सब की भाभी ‘ बन गया है ।
गुजरात मे चुनाव है और राजनीतिक पक्ष को हिंदु के मत चाहिए इस लिए सभी पक्ष रानी माँ पद्मावती पर राजनीति करेंगे ।
मेरा मानना और सुझाव है की फिल्म बनाने से पहले सेंसर बोर्ड से पटकथा मंजूर करवानी अनिवार्य हो ताकी फिल्म बनने के बाद विरोध का प्रश्न ही न हो ।
गांधींगर:- प्रखर निर्भय निडर समाज सेवी व अति वरिष्ठ लेखक लेखन रचयिता श्री रमेश जोशी जी की कलम से
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