जम्मू-कश्मीर: घाटी में ठहर गया आम जन जीवन, वाहनोें की आवाजाही न के बराबर

जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद घाटी में आम जनजीवन ठहर-सा गया है। सार्वजनिक परिवहन सड़कों से नदारद है। अपनों से मिलने, काम पर जाने, घर लौटने और रोजमर्रा के जरूरी काम निपटाने के लिए लोग मीलों पैदल चलने को मजबूर हैं। कभी-कभार वीरान हाईवे पर कोई निजी वाहन दिख जाए तो उससे लिफ्ट जरूर मिल जाती है।

बुधवार को निघत निसार नाम की एक महिला अपने शौहर के साथ नरबल रोड पर पागलों की तरह पास से गुजर रहे वाहनों को रोकने की कोशिश करती नजर आ रही थी। वह श्रीनगर से 17 किलोमीटर पैदल चलकर नरबल पहुंची थी। उसे 60 किलोमीटर दूर बारामूला में रह रहे अपने बच्चों के पास जाना था। लंबी मशक्कत के बाद एक एंबुलेंस निघत की मदद के लिए रुकी। उसने महिला और उसके शौहर को बीच रास्ते पट्टन में उतारा।

मोहम्मद रमजान को जब उसकी बेटी ने रविवार रात फोन कर मुसीबत में होने की बात कही तो वह बिना लिफ्ट का इंतजार किए श्रीनगर के लाल बाजार से बडगाम की ओर चल पड़ा। बडगाम श्रीनगर से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है। 12 किलोमीटर पैदल चलने के बावजूद उसे न तो कोई बस मिली, न ही टैक्सी। चलते-चलते इतना थक गया कि बेहोश होकर गिर पड़ा। बाद में पास से गुजर रहे सुरक्षाबलों के वाहन ने उसे बेमिना के एक अस्पताल में भर्ती करवाया।

दक्षिण कश्मीर निवासी मोहम्मद शहीम को ख्रू से श्रीनगर के बीच का 65 किलोमीटर लंबा सफर तय करने के लिए तीन बार लिफ्ट लेनी पड़ी। इस दौरान वह कई किलोमीटर पैदल भी चला। श्रीनगर में रह रहे रियाज बट्ट को 10 किलोमीटर की दूरी पर सिविल लाइंस में स्थित अपनी दवा की दुकान तक पहुंचना बहुत बड़ी चुनौती लगने लगा है। सुबह दुकान जाते समय तो उसे लिफ्ट मिल भी जाती है, लेकिन रात में पैदल लौटने के सिवा उसके पास कोई विकल्प नहीं बचता।

नगर निवासी एजाज अहमद मीर बताते हैं कि घाटी पिछले पांच दिनों से पूरी तरह से ठप पड़ी हुई है। सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। सिर्फ सुरक्षाबलों के वाहनों की आवाज सुनाई देती है। बीच-बीच में गोलियों की गूंज भी कानों से टकराती है। चप्पे-चप्पे पर जवान पहरेदारी देते नजर आते हैं। बीच-बीच में वे इलाके में पैदल गश्ती भी लगाते हैं। पूरे इलाके में चार से अधिक लोगों का एक जगह इकट्ठा होना वर्जित है। लोगों को वाहन के भी सीमित इस्तेमाल की इजाजत है।

बीमार बेटे को लेकर पत्थरबाजों के बीच फंसे

एजाज कहते हैं, ‘बुधवार शाम मेरा तीन साल का बेटा अचानक बहुत बीमार हो गया। मैं और मेरी पत्नी उसे कार में लेकर डॉक्टर के पास भागे। 100 मीटर का सफर तय ही किया था कि हम पर पत्थरों की बौछार होने लगी। लोग अनुच्छेद 370 पर केंद्र के फैसले का विरोध कर रहे थे। हमने कार वहीं छोड़ी, बेटे को गोद में उठाया और पांच किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल पहुंचे। अल्ला का शुक्र है कि इस दौरान मुझे और मेरे परिवार को जान का कोई खतरा नहीं हुआ।’

45 वर्षीय अहमद बीते तीन दिन से श्रीनगर में फंसे हुए हैं। उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं कि बारामूला में उनका परिवार किस हाल में रह रहा है। बकौल अहमद, ‘मेरे वालिद दिल के मरीज हैं। मुझे मालूम नहीं कि घरवाले उनकी दवा का इंतजाम कर पा रहे हैं या नहीं। मोबाइल, लैंडलाइन और इंटरनेट सेवा बंद होने से मैं उनका हालचाल भी नहीं ले पा रहा हूं।’30 वर्षीय निशत को अपनी बीमार बीवी को अस्पताल पहुंचाने के लिए सुरक्षाबलों से मदद की गुहार लगानी पड़ी।

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