चंद्रयान 2 मिशन : विक्रम लैंडर का पता चला, ऑर्बिटर ने भेजी तस्वीर

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख के सिवन ने एएनआई से कहा कि हमें विक्रम लैंडर का पता चल गया है। अभी तक विक्रम से कोई संपर्क नहीं हो सका है। उन्होंने कहा कि ऑर्बिटर ने विक्रम की तस्वीरें भेजी हैं लेकिन कोई संपर्क नहीं हो सकता है। उन्होंने बताया कि उससे संपर्क करने की कोशिशें की जा रही हैं।

इसरो चीफ ने कहा था, उम्मीद अभी कायम
भारतीय अनुसंधान संगठन (इसरो) के चीफ के. सिवन ने लैंडर विक्रम से संपर्क टूटने और मिशन चंद्रयान-2 के बारे में कहा था कि अभी सारी उम्मीदें खत्म नहीं हुई हैं। इसरो चीफ ने डीडी न्यूज से बात करते हुए कहा कि वैज्ञानिक उससे अगले चौदह दिनों तक संपर्क साधने की कोशिश करते रहेंगे। लैंडर से दोबारा संपर्क होने की कोई सूरत के बारे में पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए के. सिवन ने कहा- “हम संपर्क साधने की कोशिश करते रहेंगे, हम अगले 14 दिनों तक संपर्क करने की कोशिश करेंगे।” चंद्रयान के साथ गये ऑर्बिटर के बारे में बताते हुए के सिवन ने कहा कि ऑर्बिटर की लाइफ मात्र एक साल के लिए तय की गई थी, लेकिन ऑर्बिटर में मौजूद अतिरिक्त ईंधन की वजह से अब इसकी उम्र 7 साल तक लगायी जा रही है।

इसरो ने बयान जारी कर कहा था- 95 फीसदी मिशन सफल

उधर, मिशन चंद्रयान 2 को लेकर शनिवार को मिले जबरदस्त झटके के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने पहले बयान में भारत के चंद्रयान-2 को एक कठिन मिशन करार दिया। इसके साथ ही, इसरो ने इसे एक “महत्वपूर्ण तकनीकी छलांग बताया।”

क्या हुआ था मिशन में

चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने के भारत के साहसिक कदम को शनिवार तड़के उस वक्त झटका लगा जब चंद्रयान-2 के लैंडर ‘विक्रम से चांद की सतह से महज 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर संपर्क टूट गया था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के मुताबिक लैंडर ‘विक्रम चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की तरफ बढ़ रहा था और उसकी सतह को छूने से महज कुछ सेकंड ही दूर था तभी 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई रह जाने पर उसका जमीन से संपर्क टूट गया। इसके बाद इसरो के वैज्ञानिकों में हताशा जरूर नजर आई लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरा देश उनके साथ खड़ा दिखा। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें इससे हताश होने की जरूरत नहीं है।

करीब एक दशक पहले इस चंद्रयान-2 मिशन की परिकल्पना की गई थी और 978 करोड़ के इस अभियान के तहत चंद्रमा के अनछुए दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करने वाला भारत पहला देश होता।

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