करनाल: करनाल में मिनी सचिवालय के बाहर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे किसान, मोबाइल-इंटरनेट बंद

करनाल में मोबाइल इंटरनेट सेवा के निलंबन की अवधि बुधवार आधी रात तक बढ़ा दी। इससे पहले यह सेवाएं करनाल के अलावा कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद और पानीपत में मंगलवार आधी रात तक के लिए निलंबित की गई थीं।

करनाल: हरियाणा के करनाल में किसान मिनी सचिवालय के बाहर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हुए हैं।  किसान पिछले महीने हुए पुलिस लाठीचार्ज को लेकर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। किसान संगठनों ने प्रदर्शनकारियों पर 28 अगस्त को करनाल में हुए पुलिस लाठीचार्ज को लेकर कार्रवाई की मांग की थी और ऐसा नहीं होने पर उन्होंने मिनी सचिवालय का घेराव करने की धमकी दी थी। करनाल में मोबाइल इंटरनेट सेवा के निलंबन की अवधि बुधवार आधी रात तक बढ़ा दी। इससे पहले यह सेवाएं करनाल के अलावा कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद और पानीपत में मंगलवार आधी रात तक के लिए निलंबित की गई थीं।

वहीं, देर शाम करनाल के उपायुक्त निशांत कुमार यादव ने कहा कि प्रशासन ने किसान नेताओं को एक और दौर की वार्ता के लिए बुलाया था। उन्होंने कहा, ” हम लगातार उनके संपर्क में हैं और हमें मुद्दे के समाधान की पूरी उम्मीद है।” गृह विभाग ने स्थिति के संवेदनशील होने का हवाला देते हुए शाम को करनाल में मोबाइल इंटरनेट सेवा के निलंबन की अवधि बुधवार आधी रात तक बढ़ा दी। आदेश में कहा गया, “विरोध प्रदर्शन और उग्र होने आशंका है जिससे जन सुरक्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है और करनाल में कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है।” आदेश में बाकी चार जिलों के बारे में नहीं कहा गया है। दिल्ली में, कांग्रेस ने कहा कि अगर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर प्रदर्शन कर रहे किसानों से बात नहीं कर सकते हैं तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना ‘अहंकार ‘ छोड़ देना चाहिए और उन तीन ‘काले कानूनों’ को वापस ले लेना चाहिए।

इस बीच हरियाणा के कृषि मंत्री जे पी दलाल ने किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी पर राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने और कांग्रेस के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सरकार ने बार-बार स्पष्ट किया है कि वह किसानों के खिलाफ नहीं है और वास्तव में, उनके कल्याण के लिए कई पहल की है जो किसी अन्य सरकार ने नहीं की। मंगलवार सुबह महापंचायत शुरू होने के बीच स्थानीय प्रशासन ने किसानों की मांगों पर चर्चा करने के लिए उनके 11 नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल को बातचीत के लिए बुलाया था। करीब तीन घंटे बाद किसान नेताओं ने घोषणा की कि प्रशासन के साथ उनकी बातचीत नाकाम हो गयी है। इसके बाद हजारों किसानों ने सचिवालय की ओर पैदल मार्च शुरू कर दिया।

नेताओं ने किसानों से कहा कि वे पुलिसकर्मियों के साथ किसी भी तरह का टकराव मोल न लें और जहां भी उन्हें रोका जाए, वे विरोध में वहीं बैठ जाएं। स्वराज इंडिया के प्रमुख तथा संयुक्त किसान मोर्चा नेता योगेंद्र यादव ने बाद में कहा, ‘‘हमें मिनी सचिवालय के अंदर प्रवेश करने की जरूरत नहीं है और हमें केवल बाहर से घेराव करना है।’’ रात होने के बीच किसान नेताओं ने कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होती, तब तक घेराव जारी रहेगा।

यादव ने कहा कि मंगलवार को प्रशासन से बातचीत के दौरान किसान नेताओं ने केवल भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के एक अधिकारी के निलंबन पर जोर दिया और कोई अन्य मांग नहीं की गयी। उन्होंने कहा कि प्रशासन ने अधिकारी के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग को खारिज कर दिया। अधिकारियों ने हालांकि किसान नेताओं से कहा कि जांच करायी जाएगी। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने ट्वीट कर कहा कि राज्य सरकार किसानों की नहीं सुन रही है। उन्होंने कहा, ‘‘खट्टर सरकार को हमारी मांग माननी चाहिए वरना हमें गिरफ्तार कर लेना चाहिए। हम हरियाणा की जेलों को भरने के लिए तैयार हैं।’’

यादव ने एक ट्वीट में दावा किया कि राकेश टिकैत सहित मोर्चा के कई नेताओं को करनाल पुलिस ने कुछ समय के लिए हिरासत ले में लिया जब वे सचिवालय की ओर मार्च कर रहे थे। उन्होंने कहा कि किसानों के ‘भारी दबाव’ में उन्हें पुलिस बस से बाहर निकाला गया। करनाल में 28 अगस्त को पुलिस के साथ झड़प में करीब 10 प्रदर्शनकारी घायल हो गए थे, जब वे भाजपा के एक कार्यक्रम की ओर मार्च करने की कोशिश कर रहे थे। किसान नेताओं ने यह भी दावा किया कि एक किसान की बाद में मृत्यु हो गई हालांकि प्रशासन ने इस आरोप को खारिज कर दिया।

महापंचायत के लिए राकेश टिकैत, बलबीर सिंह राजेवाल, दर्शन पाल, योगेंद्र यादव, उग्राहन और गुरनाम सिंह चढूनी सहित संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के कई वरिष्ठ नेता करनाल पहुंचे। कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक विशाल महापंचायत का आयोजन किया गया था। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान कई महीनों से केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। उनका दावा है कि इस कानून से न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली समाप्त हो जाएगी।

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