एनआरसी ने खोल दिया है आफ़त का पिटारा- अवैध आप्रवासन का मामला

अवैध आप्रवासन का मामला वोट बैंक के लिए लंबे समय से राजनीतिक दलों का हथियार रहा है. एनआरसी के मसौदे का जारी होना उस डर को पुष्ट करता है कि असम के इस विवादित मुद्दे के सामाजिक, सुरक्षा संबंधी, आर्थिक और मानवीय पहलुओं को लेकर कोई भी चिंतित नहीं है.

असम में 30 जुलाई को जारी किए गए राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के अंतिम मसौदे में 2 करोड़ 89 लाख 83 हज़ार 677 लोगों को भारत का वैध नागरिक माना गया.

आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक यहां कुल 3 करोड़ 29 लाख 91 हज़ार 384 लोगों ने एनआरसी के लिए आवेदन किया था. इस तरह 40 लाख से ज़्यादा लोग इस सूची से बाहर हो गए हैं और भारत की नागरिकता के अयोग्य ठहराये जा चुके हैं.

असम में एनआरसी की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में पूरी हो रही है. इसके अनुसार एनआरसी में मार्च 1971 के पहले से असम में रह रहे लोगों का नाम दर्ज किया गया है, जबकि उसके बाद आए लोगों की नागरिकता को संदिग्ध माना गया है.

ये शर्तें 15 अगस्त, 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और असम आंदोलन का नेतृत्व कर रही असम गण परिषद (एजीपी) के बीच हुए असम समझौते के अनुरूप हैं.

ये मसला लंबे समय बाद फिर उठा है और अब सरकार द्वारा बनया गया एनआरसी का मसौदा विवादों में घिर गया है.

इसमें सरकार की मंशा से लेकर और सूची से बाहर हो चुके लोगों के भविष्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं.

वहीं, एक सच ये भी है कि जैसे की एनआरसी की सूची में शामिल सभी लोग असम के मूल निवासी नहीं हैं उसी तरह सूची से बाहर रखे गए सभी 40 लाख से ज़्यादा लोग बाहरी नहीं हैं.

    ssss

    Leave a Comment

    Related posts