संयुक्त राष्ट्र संघ: इबोला काबू इंटरनेशनल इमर्जेंसी

अब दुनिया पर मंडरा रहा है इस जानलेवा बीमारी का डर

संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन ने कांगो में इबोला के काबू में नहीं आने के बाद इस पर इंटरनेशनल इमर्जेंसी लगा दी है. क्यों दुनिया पर है इस जानलेवा बीमारी का खतरा

संयुक्त राष्ट्र संघ से वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन ने खतरनाक बीमारी इबोला से आगाह करने के लिए दुूनियाभर में इसे लेकर इंटरनेशनल इमर्जेंसी घोषित की है. कई सालों से उच्च संक्रामक वायरस वाले इबोला का खतरा दुनिया पर बना हुआ है. अब तक तो इसका कहर केवल अफ्रीका पर था लेकिन अब माना जा रहा है कि ये पूरी दुनिया को भी लपेटे में ले सकती है.

इबोला एक उच्च संक्रामक वायरस है, जिससे संक्रमित लोगों के मरने की संभावना 90 फीसदी तक होती है. आजकल कांगो में इसका कहर फैला हुआ है. वहां इबोला के कारण 1,550 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. ये बीमारी युगांडा से यहां पहुंची थी.

क्या है इबोला वायरस
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, इबोला वायरस रोग (ईवीडी) को पहले इबोला रक्तस्रावी बुखार के रूप में जाना जाता था. यह मनुष्यों के लिए घातक बीमारी है. ये वायरस जंगली जानवरों से लोगों में फैलता है. फ्रूट बैट यानी चमगादड़ इबोला वायरस का प्राथमिक स्रोत

हजारों लोगों की मौत

इबोला वायरस का पता पहली बार 1976 में दक्षिण सूडान और कांगो में चला था. बाद में इबोला नदी के पास एक गांव में यह सामने आया था, जहां से इस वायरस का नाम इबोला रखा गया. वायरस का पता चलने के बाद पहली बार बड़े पैमाने पर 2014-2016 में पश्चिम अफ्रीका में इबोला का कहर बरपा. ये गिनी से शुरू हुआ और सिएरा लियोन और लाइबेरिया तक पहुंच गया था.वहां भी हजारों लोग इससे मर चुके हैं.

क्या इसका कोई टीका बना है
अभी तक इसका कोई प्रमाणिक इलाज नहीं है. इससे बचाव के लिए टीके विकसित किये जा रहे हैं.

ऐसे फैलता है ईबोला
मरीज के संपर्क में आने से इबोला संक्रमण होता है. मरीज के खून, पसीने के संपर्क से और छूने से ये फैलता है. महामारी वाले इलाके के पशुओं के संपर्क से भी ये फैलता है.

ईबोला के लक्षण
इबोला के संक्रमण से मरीज के जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द होता है. त्वचा पीली पड़ जाती है. बाल झड़ने लगते हैं. तेज रोशनी से आंखों पर असर पड़ता है. पीड़ित मरीज बहुत अधिक रोशनी बर्दाश्त नहीं कर पाता. आंखों से जरूरत से ज्यादा पानी आने लगता है. तेज बुखार आता है. साथ ही कॉलेरा, डायरिया और टायफॉयड जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.

मरीज को बिल्कुल अलग जगह पर रख कर होता है इलाज
इबोला संक्रमण का कोई तय इलाज नहीं है, लेकिन मरीज को बिल्कुल अलग जगह पर रख कर उसका इलाज किया जाता है, ताकि संक्रमण बाकी जगह न फैले। मरीज में पानी की कमी नहीं होने दी जाती. उसके शरीर में ऑक्सीजन स्तर और ब्लड प्रेशर को सामान्य रखने की कोशिश की जाती है.

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