नासा में संस्कृत बड़े काम की चीज़ !

युवा जनर्लिस्ट प्रीटी नागपाल: ऑक्सफोर्ड से नासा ने माना कि संस्कृत बड़े काम की चीज़, कोर्स में कर रहे शामिल

आप जब भी फॉरेन लैंग्वेज सीखने की बात आती है तो आपके ज़ेहन में फ्रेंच, इटैलियन, चाइनीज़ जैसी भाषाएं आती होंगी, लेकिन क्या आपने कभी अपने ही देश की मूल भाषा संस्कृत को पढ़ने के बारे में सोचा. अब आप कहेंगे किस संस्कृत सीखना भला कैसे काम आएगा? आपको बता दें कि संस्कृत अपने-आप में समृद्ध भाषा है जो बहुत सी भाषाओं की जननी है.

दुनिया की किसी भी भाषा में इतने शब्द नहीं है जितने अकेले संस्कृत में हैं. अब तक संस्कृत में 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्दों का इस्तेमाल हो चुका है. जानकारों का मानना है कि अगर कंप्यूटर में इसका इस्तेमाल होने लगे तो इस भाषा का दायरा और बढ़ सकता है. दरअसल संस्कृत में दूसरे भाषाओं के मुकाबले कम शब्दों में ही बात खत्म हो जाती है.

यूनाइटेड किंगडम के स्कूलों में बच्चों के संस्कृत का पाठ पढ़ाया जाता है. ये पढ़ाई छठीं से आठवीं तक महज़ औपचारिकता नहीं, उसका गहरा बोध है. स्टूडेंट्स को रामायण, महाभारत के साथ संस्कृत में लिखे कई ग्रंथों को पढ़ाया जाता है. टीचर्स का मानना है कि संस्कृत बोलना एक स्पष्ट उच्चारण के लिए फायदेमंद है. इसके शब्द मुंह की एक्सरसाइज़ करवाते हैं जिसके बाद कोई भी भाषा बोलना आसान हो जाता है.

विद्यार्थियों की मानें तो उनके लिए संस्कृत  सिर्फ एक विषय नहीं बल्कि मानसिक शांति का ज़रिया भी है. राम और कृष्ण की कहानियां उन्हें मोटिवेट करती हैं.

यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो और एमआईटी जैसे संस्थान अपने यहां संस्कृत सिखा रहे हैं. ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज जैसी विश्वप्रसिद्ध यूनिवर्सिटीज में संस्कृत भाषा का अलग विभाग हैं.  इसके अलावा नासा में भी एक विभाग है जो प्राचीन संस्कृत में लिखी गई हस्तलिपि पर रिसर्च कर रहा है. नासा मानता है कि संस्कृत धरती पर बोली जाने वाली सभी भाषाओं में सबसे स्पष्ट बोली जाने वाली लैंग्वेज है. नासा 6वीं और 7वीं जनरेशन पर काम कर रही है जो कि संस्कृत पर आधारित होगा. इसीलिए संस्कृत को और गहराई से समझने के लिए नासा संस्कृत में लिखी 60 हजार पांडुलिपियों पर रिसर्च कर रहा है.
युवा जनर्लिस्ट:- प्रीटी नागपाल

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