भक्त का मान- नरसी भक्त की पावन गाथा

भक्त का मान ,,,,,
( नरसी भक्त की पावन गाथा )
भक्त नरसी जी भगवान के अनन्य भक्त थे, वे सत्संग करते हुए ठाकुर जी को केदारा राग सुनाया करते थे…
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जिसे सुनकर ठाकुर जी के गले की माला अपने आप नरसी जी के गले में आ जाया करती थी.
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एक बार भक्त नरसी जी के घर संतों की मंडली आई तो नरसी जी एक सेठ से राशन उधार लेने गये, पर सेठ ने राशन के बदले कुछ गिरवी रखने को कहा…
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नरसी जी ने अपना केदारा राग का भजन गिरवी रख दिया और वायदा किया कि उधार चुकाने तक इस राग को नही गाऊंगा और सेठ से राशन लाकर संतो को भोजन करवाया.
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उधर राजा को नरसी जी से जलने वाले पंडितो ने भड़काया कि नरसी जी सब ढोंग करते है.
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भजन गाते हुए माला को कच्ची डोर से बांधते है जिससे माला अपने आप गिरती है.
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राजा ने परीक्षा लेने के लिए नरसी जी को उनके भक्त समाज सहित महल में भजन सत्संग करने के लिए बुलाया और कहा कि हम भी ठाकुर जी की कृपा के दर्शन करना चाहते है.
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नरसी जी संतो के साथ राजा के महल में आये और सत्संग शुरू कर दिया.
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राजा ने अभिमान में आकर रेशम की मजबूत डोर मंगाई और उसमें हार पिरोकर ठाकुर जी को पहनाया.
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नरसी जी ने कीर्तन आरंभ किया.. आनंद बरसने लगा.. नरसी जी ने बहुत से भावपूर्ण भजन गाये पर माला नही गिरी..
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नरसी जी के विरोधी बहुत प्रसन्न हुए कि अब राजा नरसी जी को दंड देगा.
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क्यूंकि ठाकुर जी की माला केदारा राग सुनने से ही गिरती थी और नरसी जी केदारा राग को गिरवी रखे हुए थे..
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अब नरसी जी ठाकुर जी को उलाहना देते हुए गाने लगे.. कि ठाकुर जी आप माला पहने रखो, भक्तो की लाज जाती है तो जाये, माला संभाले रखो आप
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अब ठाकुर जी नरसी जी का रूप बनाकर सेठ के घर गये और दरवाजा खटखटाया.
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सेठ जी सो रहे थे पत्नी ने कहा कि नरसी जी भजन छुड़वाने आये है..
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सेठ ने सोते सोते ही कहा कि पैसे ले लो और रसीद बनाकर भजन सहित दे दो..
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उधर नरसी जी भाव से कीर्तन कर ऱहे थे.. पर सब संत हैरान थे कि आज नरसी जी केदारा राग क्यूं नही गा रहे..
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पर नरसी जी के मन की तो भगवान ही जानते थे..
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भगवान ने एक भक्त का रूप बनाया और नरसी जी के पास जाकर उनकी गोद में भजन और रसीद डाल दी..
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बस फिर क्या था नरसी जी जान गये कि ये ठाकुर जी की लीला है.. उन्होने उसी समय भाव से केदारा राग का वो भजन गाना शुरू किया..
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सब समाज आनंद से भर गया और इस बार ठाकुर जी सिहांसन से उठे.. नुपुरों की झन्न झन्न ध्वनि करते हुए स्वयं जाकर नरसी जी के गले में हार पहनाया.. और अपने भक्त का मान बढ़ाया..
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राजा और नरसी जी के विरोधी पंडित नरसी जी की भक्ति से प्रभावित हुए और नरसी जी के संग से वो भी भक्त बन गये..

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