जलवायु परिवर्तन को वैश्विक सुरक्षा से जोड़ने वाले UN के प्रस्ताव के खिलाफ रूस ने किया वीटो का इस्तेमाल

Russia Used Veto: रूस ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के खिलाफ वीटो का इस्तेमाल किया गया है. इस प्रस्ताव में जलवायु परिवर्तन को वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया है.

Russia Used Veto Power in UN: रूस ने जलवायु परिवर्तन को अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा (Global Security) के लिए खतरा बताने वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अपनी तरह के पहले प्रस्ताव के खिलाफ सोमवार को वीटो का इस्तेमाल किया. आयरलैंड और नाइजर के नेतृत्व में पेश किए गए प्रस्ताव ने ‘जलवायु परिवर्तन के सुरक्षा प्रभावों संबंधी जानकारी शामिल करने’ का आह्वान किया था ताकि परिषद ‘संघर्ष या जोखिम बढ़ाने वाले कारकों के मूल कारणों पर पर्याप्त ध्यान दे सके.’

इस प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र महासचिव से जलवायु संबंधी सुरक्षा जोखिमों को संघर्ष निवारण रणनीतियों का ‘एक केंद्रीय घटक’ बनाने के लिए भी कहा गया है. परिषद के पूर्व प्रस्तावों में विभिन्न अफ्रीकी देशों (African Countries) और इराक जैसे विशिष्ट स्थानों में जलवायु परिवर्तन के अस्थिर करने वाले प्रभावों का उल्लेख किया गया है, लेकिन सोमवार का प्रस्ताव पहला ऐसा प्रस्ताव है, जिसमें जलवायु संबंधी सुरक्षा खतरों को स्वयं एक मुद्दा बनाया गया है.

113 देशों ने समर्थन किया

संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से करीब 113 देशों ने इसका समर्थन किया, जिनमें से सुरक्षा परिषद के 15 में से 12 देश शामिल थे. भारत ने इसके खिलाफ मतदान किया और वीटो अधिकार प्राप्त रूस ने इसे वीटो किया और चीन ने मतदान में भाग नहीं लिया (Vote on UN Resolution). रूस और भारत के दूतों ने कहा कि यह मुद्दा जलवायु परिवर्तन पर फ्रेमवर्क कन्वेंशन जैसे संयुक्त राष्ट्र समूहों के साथ रहना चाहिए. कहा गया कि सुरक्षा परिषद के एजेंडे में जलवायु परिवर्तन को जोड़ने से केवल वैश्विक विभाजन और गहरा होगा, जो पिछले महीने स्कॉटलैंड के ग्लासगो में जलवायु वार्ता द्वारा इंगित किया गया था.

समर्थकों का क्या कहना है?

प्रस्ताव के समर्थकों ने कहा कि यह अस्तित्व के महत्व के मुद्दे पर उचित कदम का प्रतिनिधित्व करता है. रूसी राजदूत वसीली नेबेंजिया ने कहा, ‘जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा बताने से परिषद का ध्यान उसके एजेंडे में शामिल देशों में संघर्ष के वास्तविक और गहरे कारणों से हट जाता है. इसमें वैज्ञानिक और आर्थिक मुद्दे को राजनीतिक प्रश्न में बदला गया है. यह परिषद को दुनिया पर लगभग किसी भी देश में हस्तक्षेप करने का बहाना दे रहा है.’

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