5 फरवरी को मनेगा बसंत पंचमी का त्योहार, नोट कर लें पूजा का शुभ मुहूर्त और संपूर्ण पूजन विधि

Basant Panchami 2022 : इस बार बसंत पंचमी का त्योहार 5 फरवरी को मनाया जाएगा। प्रति वर्ष यह पर्व माघ महीना के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। ऋतुराज बसंत का आगमन इसी दिन होता है। सो हिन्दू मतावलंबी इसे धूमधाम से मनाते हैं। बसंत पंचमी पर्व विशेष रूप से बुद्धि व विद्या की अधिष्ठात्री मां सरस्वती को समर्पित होता है। इस अवसर पर मां शारदे की विशेष आराधना की जाती है। इसके अलावा इस दिन कामदेव की भी आराधना का भी विधान है। पौराणिक मान्यता के अनुसार माघ शुक्ल पंचमी को ज्ञान की देवी मां सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसी के कारण इस दिन विधि-विधान से देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।

बसंत पंचमी का मुहूर्त

  • पंचांगीय गणना काल के मुताबिक 5 फरवरी को प्रात: 6 बजकर 42 मिनट से पंचमी शुरू होगी। यह तिथि अगले दिन 6 फरवरी, शनिवार की सुबह 6.44 बजे तक रहेगी। इस दिन कला प्रेमी व छात्र-छात्राएं मां शारदे की आराधना करते हैं। इसको लेकर अपने घरों और सार्वजनिक स्थलों पर मां सरस्वती की मूर्ति स्थापित करते हैं तथा शुभ मुहूर्त में वैदिक विधि-विधान के साथ पूजा करते हैं।

 

निर्विवाद है मुहूर्त

  • आचार्यों के मुताबिक 5 फरवरी को बसंत पंचमी का पर्व निर्विवाद है। इसकी पुष्टि करते हुए आचार्य श्रीकृष्णानंद जी पौराणिक ‘शास्त्री जी ने कहा कि इस दिन मां वागिश्वरी (सरस्वती) जयंती मनाई जाती है। वही ताल ठोककर फगुआ गायन व रंगोत्सव का आगाज भी किया जाता है।

माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी (सरस्वती पूजा) है। इस वर्ष पंचमी तिथि 5 फरवरी को पड़ रही है। सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त पांच फरवरी को सुबह 6 बजकर 43 मिनट से 6 फरवरी सुबह 6 बजकर 43 मिनट तक है। ज्योतिषाचार्य पीके युग कहते हैं कि सरस्वती पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 5 फरवरी को सुबह 6 बजकर 43 मिनट से 12 बजकर 35 मिनट तक सबसे उत्तम है। इस दिन मां सरस्वती की आराधना करने से अपार बुद्धि और अच्छी विद्या प्राप्त होती है।

मां का हुआ था अवतरण : ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती का अवतरण हुआ था। नवरात्रा में दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी के रूप में सरस्वती स्वरूप की उपासना की भी परंपरा है। मकर राशि में सूर्य और बुध के रहने से इस वर्ष बुधादित्य योग भी बन रहा है। इस दिन सभी ग्रह चार राशियों में विद्यमान रहेंगे।

चार भुजाधारी हैं मां सरस्वती

सरस्वती माता की चार भुजाए हैं। इसमें एक हाथ में माला, दूसरे में पुस्तक और दो अन्य हाथों में वीणा बजाती नजर आती है। सुरों की अधिष्ठात्री होने के कारण इनका नाम सरस्वती पड़ा। इस दिन मां सरस्वती के साथ-साथ भगवान गणेश, लक्ष्मी, कॉपी, कलम और संगीत यंत्रों की पूजा अति फलदायी माना जाता है। देवी सरस्वती के सत्व गुण संपन्न एवं विद्या की अधिष्ठात्री हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस तिथि से अक्षराम्भ, विद्यारंभ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। पूजा के बाद श्रद्धालु एक दूसरे को अबीर और गुलाल लगाएंगे।

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