नई दिल्ली: इस हफ्ते बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ‘मॉनसून शूटआउट’ रिलीज हुई है. फिल्म के स्टार कास्ट नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी, विजय वर्मा, नीरज कबी, तनिष्ठा चैटर्जी, स्रीजिता डे और गितांजलि थापा हैं. फ़िल्म की कहानी आदि (विजय वर्मा) की पुलिस की नौकरी के पहले दिन से शुरू होती है. जहां उसकी मां, उसके पिता द्वारा दी गई सीख पर चलने को कहती है. उसके पिता के मुताबिक दुनिया में तीन रास्ते होते हैं। एक अच्छा, एक बुरा और एक बीच का. पिता की यही सीख आदि के आड़े आती है जब वो अपने पहले दिन ही एक क्रिमिनल शिवा (नवाज़ुद्दीन) का पीछा करते हुए उसे मारने के लिए उसपर बंदूक तानता है. लेकिन क्या वो पिता की दी गई सीख पर चल पाएगा.. या ज़िंदगी की वास्तविकता कुछ और ही है? ये आपको फ़िल्म देखकर ही पता चलेगा.
खूबियां
फ़िल्म की सबसे बड़ी ख़ूबी है इसका कसा हुआ स्क्रीनप्ले, फ़िल्म का ट्रीटमेंट…जहां तीनों नज़रियों को बड़ी ख़ूबसूरती ये फ़िल्माया गया है. पहले नज़रिए के बाद मुझे समझ आया कि हम किरदार के बाकी दोनों नज़रिए भी देखने वाले हैं पर आप दृश्यों के साथ इतना बंध जाते हैं कि भूल सकते हैं कि ये आदि की सिर्फ़ कल्पनाएं हैं. फ़िल्म की एक और खूबी है किरदारों का अभिनय. विजय वर्मा को दाद देना चाहूंगा जिन्होंने बहुत सधा हुआ और सहज अभिनय किया है. अपने किरदार में उन्होंने ज़रा सी भी चूक नहीं की. वहीं, नवाज़ुद्दीन की अगर बात करें तो वो भी ज़ोरदार परफ़ॉर्मेंस देते दिख रहे हैं. इस बार वो अपने पिछले कुछ किरदारों से ज़रा हटकर हैं.
खामियां
फ़िल्म का ट्रीटमेंट कुछ इस तरह का है कि कुछ लोगों को इसके कुछ हिस्से दोहराए हुए लग सकते हैं क्योंकि फ़िल्म अच्छे-बुरे और बीच के रास्ते जैसे तीनों नज़रियों को दर्शाती है. हालांकि मुझे इससे कोई परहेज़ नहीं है. मेरा सवाल सिर्फ़ इतना है कि आदि का किरदार इन तीनों नज़रियों के बारे में कल्पना कर सकता है पर सिर्फ़ तब, जब वो खुद वहां उपस्थित हो पर उनके साथ घट रहीं घटनाओं की बारीकियां आदि कैसे देख सकता है जहां वो मौजूद ही नही.
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