2024 का सेमीफाइनलः सूबाई चुनाव तय कर देंगे बीजेपी-कांग्रेस की दशा-दिशा

सीधे शब्दों में कहें तो ये चुनाव केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व पहली परीक्षा है. खासकर कृषि कानूनों की वापसी के बाद ये बीजेपी के लिए लिट्मस टेस्ट होंगे.

नई दिल्ली: केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने शनिवार को पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान कर दिया है. इसके साथ ही 2024 लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल करार दिए जा रहे इन सूबाई चुनावों को लेकर पारा गर्म होने लगा है. सेमीफाइनल इस लिहाज से भी हैं कि इन पांच राज्यों में देश की कुल आबादी का लगभग 25 फीसदी हिस्सा रहता है. ऐसे में इसके परिणाम 2024 की दशा-दिशा तय करेंगे. इन्हीं कारणों से जहां भारतीय जनता पार्टी के लिए इनकी कड़ी अहमियत है, वहीं कांग्रेस के लिए भी यह निर्णायक चुनाव होंगे. गौरतलब है कि आसन्न विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में चार में बीजेपी की सरकार है और एक में कांग्रेस की.

बीजेपी के लिए लिट्मस टेस्ट साबित होंगे ये चुनाव
सीधे शब्दों में कहें तो ये चुनाव केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व पहली परीक्षा है. खासकर कृषि कानूनों की वापसी के बाद ये बीजेपी के लिए लिट्मस टेस्ट होंगे. इनके नतीजे बता देंगे कि पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के तराई वाले इलाकों में भाजपा के प्रति किसानों का गुस्सा है या नहीं. 5 राज्यों की 620 सीटों पर मतदान होना है और इनमें से लगभग 240 विधानसभा सीटों पर किसान आंदोलन का असर है. उत्तर प्रदेश और पंजाब को छोड़ दें तो उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में कांग्रेस एवं भाजपा आमने-सामने हैं. 2017 में कांग्रेस को मणिपुर और गोवा में भाजपा के मुकाबले ज्यादा सीटें मिली थीं, लेकिन सरकार भगवा दल ने बनाई थी. दिलचस्प मुकाबला उत्तर प्रदेश में है, जहां कांग्रेस और बीएसपी अस्तित्व की लड़ाई लड़ेंगे. यहां सपा और भाजपा आमने-सामने हैं. हालांकि पंजाब में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अकाली दल के बीच त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा है. यहां भाजपा पहली बार अकाली दल से अलग होकर चुनावी समर में उतर रही है. यहां बीजेपी को मिले वोट उसकी अपनी ताकत का ही इजहार करेंगे.

कांग्रेस संयुक्त विपक्ष का चेहरा बनेगी या नहीं… तय करेंगे परिणाम
इन पांच राज्यों के नतीजे संयुक्त विपक्ष का चेहरा बनने के कांग्रेस के दावे के लिए भी महत्वपूर्ण होंगे. चुनाव वाले पांच राज्यों में से चार में भाजपा सत्तारूढ़ है. यदि 10 फरवरी से होने वाले चरणबद्ध चुनाव के नतीजे सत्तारूढ़ दल के लिए महत्व रखते हैं, तो इनके परिणाम विपक्षी खेमे के लिए भी उतना ही राजनीतिक महत्व रखते हैं. वजह साफ है आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने आक्रामक चुनावी अभियान छेड़ दिया है, जिनके निशाने पर भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस भी है. जाहिर है इन चुनावों के परिणाम देश की विपक्षी राजनीति में नए समीकरणों को जन्म दे सकते हैं.

पहले दो चरण साबित हो सकते हैं महत्वपूर्ण
भाजपा के लिए 10 और 14 फरवरी को होने वाले मतदान के पहले दो चरण शायद सबसे चुनौतीपूर्ण हैं, क्योंकि इन्हीं में पंजाब और जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वोट पड़ेंगे. पंजाब में किसानों का आंदोलन सबसे तेज था और पश्चिमी उप्र भी इससे जुड़े विरोध-प्रदर्शनों से बुरी तरह प्रभावित रहा. गोवा और उत्तराखंड दोनों राज्यों में भाजपा सत्ता में है और वहां भी 14 फरवरी को ही मतदान है. राजनीतिक पंडितों की मानें तो पहले दो चरणों में दिखने वाले चुनावी रुझान उत्तर प्रदेश के लिए शेष पांच चरणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. राज्य में कुल 403 विधानसभा सीटें हैं, जहां 15 करोड़ से अधिक मतदाता हैं.

यूपी में सपा-रालोद भगवा समर्थकों में सेंध लगाने की कोशिश में
कुछ हलकों में अटकलें लगाई जा रही थीं कि भाजपा चाहेगी कि उत्तर प्रदेश में चुनाव राज्य के पूर्वी हिस्से से शुरू हों, जहां माना जाता है कि किसानों के विरोध के मद्देनजर पार्टी राज्य के पश्चिमी हिस्से की तुलना में मजबूत स्थिति में है. हालांकि चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करते समय पारंपरिक पद्धति का पालन ही किया गया है. यानी मतदान राज्य के पश्चिमी हिस्से से पूरब की ओर बढ़ेगा. यदि 2017 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में मजबूत लहर थी, जिसके कारण पूरे राज्य में भाजपा को फायदा मिला था, तो इस बार भाजपा को जाटों के एक वर्ग के बीच कथित गुस्से की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जिसे सत्तारूढ पार्टी के खिलाफ अपने पक्ष में भुनाने के लिए समाजवादी पार्टी और रालोद ने हाथ मिलाया है.

उत्तराखंड में कांग्रेस की अंतर्कलह न बिगाड़ दे खेल
भाजपा को उत्तराखंड में कांग्रेस के खेमे में मतभेदों से भी फायदा होने की उम्मीद है. भले ही उसे राज्य में दो मुख्यमंत्रियों को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा हो. एक अनुमान है कि उत्तराखंड की 70 सीटों में से 15 पर  किसान आंदोलन का कुछ असर पड़ सकता है. हरिद्वार और उधमसिंह नगर में सिखों और मुस्लिमों की बड़ी आबादी है. इसके अलावा राज्य में तीन सीएम बदलने वाली भाजपा यहां ऐंटी-इनकम्बैंसी फैक्टर से जूझ रही है. हर 5 साल पर सत्ता परिवर्तन के रिवाज वाले इस राज्य में यदि भाजपा सरकार दोहराती है, तो यह उसके लिए बड़ी सफलता होगी. ऐसे में हरीश रावत और अन्य कांग्रेस नेताओं के बीच आंतरिक कलह ने भाजपा के लिए उम्मीदें बढ़ाने का काम किया है. गोवा और मणिपुर में भी बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है, क्योंकि भाजपा ने राजनीतिक कौशल या दांव-पेंच से दोनों राज्यों में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को ‘दलबदल’ के जरिये कमजोर करने का काम बखूबी अंजाम दिया है.

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